Friday, 1 February 2019

                                           
                 शायद अब हम बदल गए हैं?




लोगो को लगता है, के हम बदल गए हैं. पर हमे लगता है.अब लोग बदल गए हैं.
शकल वही ,आँख,नाक वही ,पर अब चेहरे  पर लगे मुखोटे बदल गए हैं.
लोग वही,उनकी आवाज़ वही, पर ज़माने को देखने के उनके अंदाज़ बदल गए हैं.
और फिर भी उनको लगता है,शायद के अब हम बदल गए हैं ,



लोग वही, लोगो की भीड़ वही,उनके चहरे पर पड़ रहीं  उम्र की लकीरे वही ,
घर वही ,आँगन मे पड़ती धुप वही,धूप मैं रखे आम के अचार का सवाद वही,
घर के दरवाज़े पर लगी,लोहे की कुण्डी वही,
पर उस घर मैं रहने वाले अब लोग बदल गए हैं.
और उनको आज भी लगता है,शायद के हम बदल गए है?


वही घर का नक्शा ,वही छत  का छज्जा,सब वही है,
दिवार मे पड़ी दरारे ,गली के  नुक्कड़ पर बना बिजली का खम्बा सब कुछ वही है. 
पर घर की खिड़की से झाकते चहरे अब बदल गए है। 
और फिर भी उनको लगता हैं ,शायद के हम बदल गए है। 

सुबह वही,शाम वही,गर्मी की दोपहरों में ,सड़को पर पड़ी सुनसान वही,
मस्जिद से आती अज़ान की आवाज़ वही,मंदिर से जयकारो की आती गूंज वही,
वही ईद है,वही दिवाली,दिवार पर टंगा आईना वही,
पर उस आइने में देखती सूरत अब बदल गयी है,
और उनको आज भी लगता है, शायद के अब हम बदल गए है?

हम वही हैं,तुम भी वही हो ,रात वही है ,वो बात वही,
मेरे आस पास अपनों की भीड़ वही का शोर वही,
पर लोगो की भीड़ के शोर मैं अब कुछ लोगो के ज़मीर बदल गए है,
और जनाब आपको अब भी लगता है,शायद अब के हम बदल गए हैं

                         
                                                                                                                           शादाब खान