Wednesday, 14 August 2019

                                       आज़ादी मुबारक हो मेरे वतन 

                   



हर रोज़ की तरह आज भी मैं अपने घर की खिड़की मैं बैठे हुए समंदर मैं पड़ रही चाँद की परछाही को देख रहा था. और सोच रहा था। ऐसा ही तो दिखता था चाँद कभी मेरे घर की छत से.लेकिन पता नहीं चाँद की चमक आज कुछ काम सी लग रही थी। शायद इस लिए क्युकी दिल आज पहले से कहीं जीयदा उदास है. क्यों?
क्युकी कल 15 अगस्त है. कल का दिन मेरी ज़िन्दगी मैं बहुत खास है क्युकी जब मैं छोटा हुआ करता था तब अपने स्कूल मैं हर साल 15 अगस्त को किसी त्यौहार की तरह मनाया करता था। सफ़ेद कपडे पहने हुए हाथ मैं मेरे देश का झंडा लिए हुए परेड के लिए निकल जाया  करता था. बहुत बार तो मुझे अपने बर्थडे मानाने का भी ख्याल नहीं आता था पर मैं 15 अगस्त कभी नहीं भूलता था। मुझे आज भी याद है उन दिनों 15 अगस्त के दौरान थोड़ी ठण्ड हुआ करती थी. और 26 जनवरी मैं तो अम्मी मुझे स्कूल जाने से पहले बहुत सारे गरम कपडे पहनाया करती थी. लेकिन आप सोच रहे होंगे ये सब मैं आपको क्यों बता रहा हु.
क्युकी बचपन तो बचपन होता है फिर चाहे मेरा हो या आपका।
वो कहाँ  दो परिवारों और दो धर्मो का फर्क देखता है। जब मैं छोटा था तो मुझे नहीं मालूम था।
धर्म क्या है? या हिन्दू और मुस्लिम क्या होता है, या यूँ कहु के अम्मी ने कभी ये फर्क बताया ही नहीं.
क्यों की मैं हमेशा होली खेला करता था अपने दोस्तों के साथ मंदिर जाया करता था. या फिर मैं यूँ करू के मैं एक ऐसे परिवार मैं बड़ा हुआ जहाँ  मैं मंदिर और मस्जिद, राम और रहीम का कभी मुझे फ़र्क़ ही नहीं बताया गया।अब अम्मी को को भी क्या दोष देना उनको भी क्या पता था के एक दिन ऐसा भी आएगा जहा लोग आपको आपके धर्म के हिसाब से परखा करेंगे। जहा आपका इंसान होना ही काफी नहीं होगा आपको बात-बात पर देश छोड़ने की बाते भी सुन्नी पड़ेगी। आपको आपके नाम  बताते ही आपका धर्म पुछा जायेगा.
जहाँ  ये सब भूला दिया जायेगा के आप भी इस देश में  पैदा हुए हो. और इस देश की संस्कृति का हिस्सा हो .
आज मैं अपनों से दूर, अपने देश से हज़ारो मिलो दूर अमेरिका के एक बहुत बड़े शहर न्यू यॉर्क में हूँ।
आज मुझे अचानक याद आ गया के आज तो 14 अगस्त है. तो मैं मार्किट चला गया तिरंगा लेने। मैंने सोचा देश से दूर हुए तो क्या हुआ काम से काम माना तो सकता हु. मैं दूकानदार से झंडा हाथ मैं ले ही रहा था के पास खड़े एक बच्चे ने मुझे से बिना झिझक पुछा आप इंडिया से हो मेने जवाब मैं सिर हिला दिया उसने तभी एक और सवाल पुछा अंकल आप हिन्दू है या मुस्लिम? पहले तो मैं उस छोटे से बच्चे का मासूम चेहरा देखता रहे गया ।
मैं उसको जवाब देने की सोचा ही रहा था।  तभी उसकी माँ ने  उसको डांट लगाकर कहा अंकल को सॉरी बोलो और अंकल हिन्दू है या मुस्लिम तुमको क्या करना है. बच्चे ने मुझे सॉरी बोलै और अपनी माँ का हाथ थामकर जाने लगा और जाते जाते वो अब भी मेरा मुँह देख रहा था के जैसे मैंने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया।
मैं कुछ देर खामोश रहा। फिर घर के लिए निकल गया। शाम का समय था तो रोज़ की तरह आज भी सड़को पर गाडिओ जाम लगा था। और मैं बस उस बच्चे की बात सोच रहा था।
मैं बच्चे के सवालो से तो यही अनुमान लगा रहा था के आखिर केसा होगा आने वाले भारत का भविषय।
आज देश को आज़ाद हुए बहुत साल बीत गए हैं लेकिन हम और आप आज भी कही न कही किसी न किसी
धर्म के नाम जाति के गुलाम बने हुए हैं। हर कोई सोचता है. एक दिन जब हमको समय मिलेगा तो हम अच्छा काम ज़रूर करेंगे लेकिन ज़िन्दगी मैं वो सही समय शायद कभी नहीं आता.
तो क्यों न आज कुछ अच्छा किया जाये। अपने तो अपने ही है,
क्यों न आज गैरो  को भी गले लगा कर अपना लिया जाये.

"नफरत की आग सिर्फ आग लगाना जानती है वो ये नहीं देखती के कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान"है।
"दोस्तों घर कितना भी मज़बूत क्यों न हो अक्सर उसमे दरदरे पद ही जाती है और ददरो को सही समय पर अगर नहीं भरा गया तो वो उस घर को और उसमे रहने वालो को भी तभा कर देती है.
नफरत की आग लगाना बहुत आसान है। पर हम में से तो किसी न किसी को ये आग बुझाना ही पड़ेगी।
ताकि हम और आप अपने आने वाली नयी पीढ़ी को आज़ाद भारत दे सके
जहा नफरत की आग न हो,जहा सब एक सामान हों;
जहाँ हम सब की पहचान सिर्फ एक भारतीय हो ।
जय हिन्द जय भारत

"वो बच्चा तो वह से चला गया पर वो मेरे लिए बहुत सरे सवाल पीछे छोड़ गया......
                               

                                                                                                 "ए मेरे वतन आज़ादी मुबारक हो"
                                                                                                                   तुम्हारा
                                                                                                               शादाब  खान 


Friday, 1 February 2019

                                           
                 शायद अब हम बदल गए हैं?




लोगो को लगता है, के हम बदल गए हैं. पर हमे लगता है.अब लोग बदल गए हैं.
शकल वही ,आँख,नाक वही ,पर अब चेहरे  पर लगे मुखोटे बदल गए हैं.
लोग वही,उनकी आवाज़ वही, पर ज़माने को देखने के उनके अंदाज़ बदल गए हैं.
और फिर भी उनको लगता है,शायद के अब हम बदल गए हैं ,



लोग वही, लोगो की भीड़ वही,उनके चहरे पर पड़ रहीं  उम्र की लकीरे वही ,
घर वही ,आँगन मे पड़ती धुप वही,धूप मैं रखे आम के अचार का सवाद वही,
घर के दरवाज़े पर लगी,लोहे की कुण्डी वही,
पर उस घर मैं रहने वाले अब लोग बदल गए हैं.
और उनको आज भी लगता है,शायद के हम बदल गए है?


वही घर का नक्शा ,वही छत  का छज्जा,सब वही है,
दिवार मे पड़ी दरारे ,गली के  नुक्कड़ पर बना बिजली का खम्बा सब कुछ वही है. 
पर घर की खिड़की से झाकते चहरे अब बदल गए है। 
और फिर भी उनको लगता हैं ,शायद के हम बदल गए है। 

सुबह वही,शाम वही,गर्मी की दोपहरों में ,सड़को पर पड़ी सुनसान वही,
मस्जिद से आती अज़ान की आवाज़ वही,मंदिर से जयकारो की आती गूंज वही,
वही ईद है,वही दिवाली,दिवार पर टंगा आईना वही,
पर उस आइने में देखती सूरत अब बदल गयी है,
और उनको आज भी लगता है, शायद के अब हम बदल गए है?

हम वही हैं,तुम भी वही हो ,रात वही है ,वो बात वही,
मेरे आस पास अपनों की भीड़ वही का शोर वही,
पर लोगो की भीड़ के शोर मैं अब कुछ लोगो के ज़मीर बदल गए है,
और जनाब आपको अब भी लगता है,शायद अब के हम बदल गए हैं

                         
                                                                                                                           शादाब खान 



Friday, 26 May 2017

Shadab khan Radio Jockey and TV Anchor: RJ

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